चांगी और मांगी: चीन की लोक-कथा
एक बार एक गांव में दो भाई रहा करते थे । उनका नाम था चांगी और मांगी । कहने को तो वे दोनों सगे भाई थे परंतु उनकी आदत एक दूसरे के विपरीत थी ।
चांगी बहुत उदार और नेकदिल था । वह अपने बड़ों का आदर और छोटों से प्यार करता था । उसने खूब मेहनत करके अपार धन कमाया था । उसके यहां अनेक नौकर-चाकर थे । वह अपने नौकरों के प्रति बहुत दयावान था । उनकी परेशानी में उनकी सहायता करता था । इस कारण उसके नौकर उसे दिल से प्यार करते थे ।
इसके ठीक विपरीत मांगी क्रूर स्वभाव का था । उसमें दया और प्रेम की भावना लेशमात्र भी नहीं थी । वह अकड़ू और कठोर इंसान था । परंतु व्यापार के मामले में किस्मत ने उसका साथ दिया था । इस कारण उसका व्यापार खूब फल-फूल रहा था । उसके यहां नौकर तो बहुत थे, परंतु कोई अंदर से खुश नहीं था ।
मांगी अपने नौकरों से सुबह से शाम तक काम करवाता, परंतु तनख्वाह बहुत कम देता था । बीमार होने पर भी उन्हें छुट्टी नहीं देता था । यदि किसी नौकर के परिवार में कोई बीमार हो अथवा कोई परेशानी हो, मांगी उसकी कोई भी सहायता करने से इन्कार कर देता था ।
कई बार दुखी होकर कुछ नौकर मांगी का काम छोड़ने की सोचते थे, परंतु अपने मालिक के साथ नमक हरामी करना पसंद नहीं करते थे । व कहते थे कि हम जब तक जिंदा रहेंगे, मालिक की सेवा करते रहेंगे । मालिक चाहे जैसा भी हो, वह हमारा अन्नदाता होता है । उसकी सेवा करना हमारा फर्ज है । इसी कारण कोई भी नौकर उसके यहां दुख सहते हुए भी नौकरी छोड़कर नहीं जाता था ।
चांगी यह देखकर मन ही मन बहुत दुखी होता था कि मांगी के सारे नौकर इतना कष्ट पा रहे हैं । चांगी ने अपने भाई को कई बार समझाने की कोशिश की, परंतु वह कुछ समझता ही नहीं था ।
धीरे-धीरे मांगी का व्यापार चौपट होता जा रहा था । उसके बुरे व्यवहार व रूखी भाषा के कारण सभी लोग उससे व्यापार करने में कतराने लगे थे । एक दिन चांगी ने मांगी से कहा - "भाई, ईश्वर का दिया हम लोगों के पास सब कुछ है । फिर भी तुम अपने नौकरों से इतना बुरा व्यवहार क्यों करते हो ?"
मांगी थोड़ा क्रोधित होते हुए बोला - "मैं तो किसी से दुर्व्यवहार नहीं करता, तुम यूं ही मुझ पर आरोप लगा रहे हो ।"
चांगी ने कहा - "मैं जानता हूं कि तुम्हारे नौकर बहुत दुखी हैं, यदि तुम अपने नौकरों को ठीक तनख्वाह देकर मीठा व्यवहार नहीं कर सकते तो तुम किसी और शहर में जाकर अपना व्यापार शुरू कर दो । मुझसे अपनी आंखों के सामने ऐसा व्यवहार देखा नहीं जाता । तुम्हारे जाने के बाद मैं तुम्हारे नौकरों को अपने पास रख लूंगा ।"
यह सुनकर मांगी ने अपने भाई को बहुत भला-बुरा कहा और चांगी चुपचाप वहां से चला गया ।
चांगी अपने भाई को सुधारने के लिए कोई उपाय सोचने लगा । एक दिन वह विचारों में खोया था । तभी उसका पुराना नौकर उसके पास आया और बोला - "मालिक, मैं जानता हूं कि आप क्यों परेशान हैं ? आप कहें तो मैं आपकी सहायता कर सकता हूं ।"
नौकर की बात सुनकर चांगी का ध्यान भंग हो गया । वह बोला - "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो ?"
नौकर ने कहा - "मैं चाहे जो करूं, पर उससे मांगी साहब जरूर सुधर जाएंगे या फिर शहर छोड़कर चले जाएंगे ।"
चांगी बोला - "क्या तुम जानते हो कि यह कितनी मुसीबत का काम है ?"
नौकर ने जवाब दिया - "हां मालिक, मैं अच्छी तरह जानता हूं । पर आपके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं । बस, आप मुझे आज्ञा दीजिए ।"
इसके पश्चात् बूढ़े नौकर ने अपनी योजनानुसार रात्रि में मांगी के घर में प्रवेश पा लिया और जब मांगी चैन से गहरी नींद सो गया तो उसने धीरे से मांगी का कम्बल उतारा और खिड़की के रास्ते भाग गया ।
सुबह को मांगी उठा तो उसे बहुत तेज सर्दी लग रही थी । उसने ढूंढ़ा परंतु उसका कम्बल कहीं नहीं मिला । उसे क्रोध आ गया । फिर जब वह दिन में अपने व्यापार पर गया तो वहां एक पैकेट पड़ा पाया । मांगी ने पैकेट खोला तो उसका कम्बल वहां रखा था, उस पर एक पर्ची लगी थी जिस पर लिखा था - "अपने लोगों से व्यवहार सुधार ले, वरना छोड़ूंगा नहीं ।"
मांगी को लगा कि जरूर यह उसके नौकरों की चाल है । अगले दिन वह अपने कमरे के भीतर सोया । परंतु जब सुबह उठा तो यह देखकर हैरान रह गया कि उसका तकिया गायब है । उसे बड़ा क्रोध आने लगा । उसने नौकरों को अच्छी-खासी डांट पिलाई । परंतु नौकर शिष्टाचावश माफी मांगते रहे और कुछ न बोले ।
वह व्यापार को जाने के लिए तैयार हो रहा था कि तभी कोई उसके दरवाजे पर एक बड़ा पैकेट छोड़ गया । उसने देखा कि उसके सारे नौकर उसके ही सामने खड़े थे । उसने धड़कते दिल से पैकेट खोला तो देखा कि उसमें उसका तकिया रखा था जिस पर एक पर्ची लगी थी । पर्ची पर लिखा था - "अपना व्यवहार बदल लो वरना... ।"
मांगी डर गया । अगले दिन वह रात्रि होने पर बहुत देर तक जागता रहा ताकि वह तकिया कम्बल ले जाने वाले को पकड़ सके । परंतु आधी रात्रि तक कोई नहीं आया । वह बैठा इंतजार करता रहा कि न जाने कब उसे नींद आ गई ।
मांगी सुबह को उठा तो उसने देखा कि उसका बिस्तर सही सलामत है । वह बहुत खुश हुआ । तभी उसको देखकर उसका एक नौकर हंसने लगा । उसे बड़ा क्रोध आया । उसके बाद जो भी उसे मिलता उसे देखकर हंसने लगता । मांगी को कुछ भी समझ में न आया । कुछ देर बाद जब वह शीशे के सामने गया तो उसे हकीकत मालूम हुई ।
मांगी डर के मारे थर-थर कांपने लगा । कोई उसकी एक मूंछ व सिर के आधे बाल काट कर ले गया था । मांगी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ? उसे लगने लगा कि यदि कोई उसकी मूंछ काट सकता है तो कल उसकी गरदन भी काट सकता है । उसने तुरंत नौकरों को आदेश दिया - "मेरा सारा सामान बांध दो । मैं दूसरे शहर में जाकर व्यापार करना चाहता हूं ।"
नौकर कुछ समझ ही न सके । मांगी सिर पर टोपी लगाकर व दूसरी मूंछ पूरी तरह साफ करके अपने व्यापार के लिए चल दिया ताकि अपना व्यापार बंद करके कहीं और जाने का इंतजाम कर दे ।
रास्ते में उसे चांगी मिला । वह चांगी से नजरें चुराने लगा । बिना मूंछों के उसकी शक्ल पहचानी नहीं जा रही थी । चांगी ने उसे रोक लिया और पूछा - "तुम इतने घबराए हुए कहां जा रहे हो ?"
मांगी बोला - "भाई तुम ठीक कहते थे । मैंने भी अब निर्णय कर लिया है कि मैं अपना व्यापार दूसरे शहर में जाकर करूंगा ।"
चांगी ने बहुत पूछा, तब उसने सारी घटना बता दी । मांगी को अपने बुरे व्यवहार के लिए भी पश्चाताप था । चांगी ने कहा - "यदि तुम्हें विश्वास है कि अब तुम अपने नौकरों व अन्य लोगों से दुर्व्यवहार नहीं करोगे तो मेरी प्रार्थना है कि तुम यहीं रहो ।"
मांगी अपने भाई की बात मान कर वहीं रहने लगा । अब चांगी-मांगी व उनके सभी नौकर बहुत खुश थे ।
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